रायपुर 3 अक्तूबर 2025 / ETrendingIndia / The founding of the RSS reflects an enduring sense of national consciousness that has risen to meet the challenges of every era: PM. RSS is guided by the principle of ‘Nation First’ and one goal – ‘Ek Bharat, Shreshtha Bharat’, says Shri Modi; commemorative postage stamp and special coin released to mark centenary celebrations / आरएसएस शताब्दी समारोह , प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली स्थित डॉ. अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया।
श्री मोदी ने कहा विजयादशमी का महापर्व है, भारतीय संस्कृति के शाश्वत उद्घोष, अन्याय पर न्याय, असत्य पर सत्य और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। ऐसे ही पावन अवसर पर 100 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी .
उन्होंने कहा कि इस युग में संघ उस शाश्वत राष्ट्रीय चेतना का एक सद्गुणी अवतार है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष का साक्षी बनना वर्तमान पीढ़ी के स्वयंसेवकों के लिए सौभाग्य की बात है।
प्रधानमंत्री ने संघ के संस्थापक और पूज्यनीय आदर्श डॉ. हेडगेवार के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित की।
उन्होंने घोषणा की कि संघ की गौरवशाली 100 वर्ष की यात्रा के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने एक विशेष डाक टिकट और स्मारक सिक्का जारी किया है। 100 रुपये के इस सिक्के पर एक ओर राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न तो दूसरी तरफ सिंह के साथ वरद मुद्रा में भारत माता की भव्य छवि अंकित है, जिन्हें स्वयंसेवकों द्वारा नमन किया जा रहा है।
श्री मोदी ने रेखांकित किया कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में संभवतः यह पहली बार है, जब भारत माता की छवि भारतीय मुद्रा पर दिखाई दी है। उन्होंने कहा कि सिक्के पर संघ का मार्गदर्शक आदर्श वाक्य- “राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय, इदं न मम” भी अंकित है।
इस बात पर प्रकाश डाला कि 1963 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने देशभक्ति की धुनों पर ताल से ताल मिलाते हुए बड़े गर्व के साथ परेड में भाग लिया था। उन्होंने कहा कि यह डाक टिकट उस ऐतिहासिक क्षण की स्मृति को समेटे हुए है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस प्रकार महान नदियां अपने तटों पर मानव सभ्यताओं का पोषण करती हैं, उसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी असंख्य लोगों को पोषित और समृद्ध किया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और एक नदी की तुलना करते हुए, जो अनेक धाराओं में विभाजित होकर अलग-अलग क्षेत्रों को पोषित करती है,
प्रधानमंत्री ने कहा कि संघ की यात्रा इसी का प्रतिबिंब है, जहां इसके विभिन्न सहयोगी संगठन जीवन के सभी पहलुओं- शिक्षा, कृषि, समाज कल्याण, जनजातीय उत्थान, महिला सशक्तिकरण, कला और विज्ञान तथा श्रम सेक्टर में राष्ट्र सेवा में संलग्न हैं।
संघ के अनेक धाराओं में विस्तार के बावजूद उनमें कभी विभाजन नहीं हुआ। प्रधानमंत्री ने कहा, “प्रत्येक धारा, विविध क्षेत्रों में कार्यरत प्रत्येक संगठन, एक ही उद्देश्य और भावनाः राष्ट्र प्रथम को साझा करता है।”
श्री मोदी ने कहा, “अपनी स्थापना के समय से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने महान उद्देश्य- राष्ट्र निर्माण को अपनाया है।”
प्रधानमंत्री ने कहा, “पूज्य डॉ. हेडगेवार समझते थे कि राष्ट्र तभी वास्तविक रूप से सशक्त होगा जब प्रत्येक नागरिक अपने दायित्व के प्रति जागरूक होगा; भारत तभी उन्नति करेगा जब प्रत्येक नागरिक राष्ट्र के लिए जीना सीखेगा।”
उन्होंने डॉ. हेडगेवार की तुलना एक कुम्हार से की, जो साधारण मिट्टी से शुरुआत करता है, उस पर लगन से काम करता है, उसे आकार देता है, पकाता है और अंततः ईंटों का उपयोग करके एक भव्य संरचना का निर्माण करता है। उसी तरह डॉ. हेडगेवार ने सामान्य व्यक्तियों का चयन किया, उन्हें प्रशिक्षित किया, दूरदृष्टि प्रदान की और राष्ट्र के लिए समर्पित स्वयंसेवकों के रूप में आकार दिया।
इसीलिए संघ के बारे में कहा जाता है कि वहां सामान्य लोग असाधारण और अभूतपूर्व कार्यों को पूरा करने के लिए एकजुट होते हैं।
उन्होंने कहा कि ये शाखाएं चरित्र निर्माण की यज्ञ वेदी हैं, जो शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देती हैं।
शाखाओं के भीतर, राष्ट्र सेवा की भावना और साहस की जड़ें पनपती हैं, त्याग और समर्पण स्वाभाविक हो जाते हैं, व्यक्तिगत श्रेय की लालसा कम हो जाती है और स्वयंसेवक सामूहिक निर्णय लेने और टीमवर्क के मूल्यों को आत्मसात कर लेते हैं।
स्वतंत्रता संग्राम का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि पूज्य डॉ. हेडगेवार और कई अन्य कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था और डॉ. हेडगेवार को कई बार कारावास भी भुगतना पड़ा था।
प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि संघ ने अनेक स्वतंत्रता सेनानियों की सहायता की और उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। उन्होंने चिमूर में 1942 के आंदोलन का उदाहरण दिया, जहां कई स्वयंसेवकों ने ब्रिटिश शासन के भीषण अत्याचार सहे थे।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद भी संघ ने हैदराबाद में निजाम के उत्पीड़न का विरोध करने से लेकर गोवा और दादरा एवं नगर हवेली की मुक्ति में योगदान देने तक- बलिदान देना जारी रखा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को राष्ट्रसेवा की अपनी यात्रा में अनेक आक्रमणों और षड्यंत्रों का सामना करना पड़ा है,
श्री मोदी ने स्मरण किया कि कैसे स्वतंत्रता के बाद भी संघ को दबाने और उसे मुख्यधारा में शामिल होने से रोकने के प्रयास किए गए।
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पूज्य गुरुजी को झूठे मामलों में फंसाकर जेल भेज दिया गया था। फिर भी रिहा होने पर गुरुजी ने अत्यंत धैर्य के साथ कहा, “कभी-कभी जीभ दांतों तले फंस जाती है और कुचल जाती है। लेकिन हम दांत नहीं तोड़ते, क्योंकि दांत और जीभ दोनों हमारी हैं।”
कठोर यातनाएं और विभिन्न प्रकार के उत्पीड़न सहने के बावजूद गुरुजी ने किसी के प्रति कोई द्वेष या दुर्भावना नहीं रखी।
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि चाहे प्रतिबंधों, षड्यंत्रों या झूठे मुकदमों का सामना करना पड़ा हो, स्वयंसेवकों ने कभी कटुता को स्थान नहीं दिया, क्योंकि वे समझते थे कि वे समाज से अलग नहीं हैं ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कभी भी कटुता नहीं रखी, इसका एक प्रमुख कारण लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं में प्रत्येक स्वयंसेवक की अटूट आस्था है।
उन्होंने याद दिलाया कि विभाजन के कष्टदायक दौर में, जब लाखों परिवार विस्थापित हुए थे, स्वयंसेवक सीमित संसाधनों के बावजूद शरणार्थियों की सेवा में सबसे आगे खड़े रहे।
प्रधानमंत्री ने 1956 में गुजरात के अंजार में आए विनाशकारी भूकंप का भी उल्लेख किया और व्यापक विनाश का वर्णन किया। उस समय भी स्वयंसेवक राहत और बचाव कार्यों में सक्रिय रूप से लगे हुए थे।
श्री मोदी ने 1962 के युद्ध को याद करते हुए कहा, “दूसरों के दुखों को दूर करने के लिए कष्ट सहना प्रत्येक स्वयंसेवक की पहचान है।”
उस युद्ध में आरएसएस के स्वयंसेवकों ने सशस्त्र बलों की अथक सहायता की, उनका मनोबल बढ़ाया और सीमावर्ती गांवों तक सहायता पहुंचाई।
प्रधानमंत्री ने 1971 के संकट का भी उल्लेख किया, जब पूर्वी पाकिस्तान से लाखों शरणार्थी बिना किसी आश्रय या संसाधन के भारत पहुंचे थे। उस कठिन समय में स्वयंसेवकों ने भोजन की व्यवस्था की, आश्रय प्रदान किया, स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कीं, उनके आंसू पोंछे और उनके दर्द को साझा किया।
श्री मोदी ने कहा कि स्वयंसेवकों ने 1984 के दंगों के दौरान भी कई सिखों को शरण दी थी।
आज भी, पंजाब में बाढ़, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में आई आपदाओं और केरल के वायनाड में हुई त्रासदी जैसी आपदाओं में, स्वयंसेवक सबसे पहले सहायता पहुंचाने वालों में से हैं।
उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान, पूरे विश्व ने संघ के साहस और सेवा भावना को प्रत्यक्ष रूप से देखा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्षों की यात्रा में उसका एक सबसे महत्वपूर्ण योगदान समाज के विभिन्न वर्गों में आत्म-जागरूकता और गौरव का संचार करना रहा है, कहा कि संघ ने देश के सबसे दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में विशेष रूप से देश के लगभग दस करोड़ जनजातीय भाइयों और बहनों के बीच, निरंतर कार्य किया है।
सेवा भारती, विद्या भारती और वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन जनजातीय सशक्तिकरण के स्तंभ बनकर उभरे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जाति आधारित भेदभाव और कुरीतियों जैसी गहरी जड़ें जमाए बैठी सामाजिक बुराइयां लंबे समय से हिंदू समाज के लिए गंभीर चुनौती रही हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस चुनौती के समाधान के लिए निरंतर कार्य किया है।
डॉ. हेडगेवार से लेकर आज तक संघ के प्रत्येक प्रतिष्ठित व्यक्ति और सरसंघचालक ने भेदभाव और छुआछूत के विरुद्ध लड़ाई लड़ी है।
अपने कार्यकाल के दौरान, पूज्य रज्जू भैया और पूज्य सुदर्शन जी ने भी इसी भावना को आगे बढ़ाया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी ने समाज के सामने सामाजिक समरसता का एक स्पष्ट लक्ष्य रखा है, जो “एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान” के विजन में निहित है।
श्री मोदी ने कहा कि एक सदी पहले जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी, उस समय की आवश्यकताएं और संघर्ष अलग थे। भारत सदियों पुरानी राजनीतिक पराधीनता से मुक्ति पाने और अपने सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के लिए प्रयासरत था।
आज, जब भारत एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है, तो चुनौतियां भी बदल गई हैं।
आज की चुनौतियों में दूसरे देशों पर आर्थिक निर्भरता, राष्ट्रीय एकता को तोड़ने की साजिशें और जनसांख्यिकीय हेरफेर शामिल हैं।
उन्होंने इस बात पर भी गर्व व्यक्त किया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने न केवल इन चुनौतियों की पहचान की है, बल्कि उनका सामना करने के लिए एक ठोस रोडमैप भी तैयार किया है।
श्री मोदी ने कहा, “संघ का आदर्श भारतीय संस्कृति की जड़ों को गहरा और सुदृढ़ करना है। इसका प्रयास समाज में आत्मविश्वास और गौरव का संचार करना है।
इसका विजन भारतीय समाज को सामाजिक न्याय का प्रतीक बनाना है। इसका मिशन वैश्विक मंच पर भारत की आवाज को बुलंद करना है। इसका संकल्प राष्ट्र के लिए एक सुरक्षित और उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करना है।”
इस कार्यक्रम में केंद्रीय संस्कृति मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता, आरएसएस के सरकार्यवाह (महासचिव) श्री दत्तात्रेय होसबोले सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।