रायपुर 7 सितंबर 2025 / ETrendingIndia / The mischief of monkeys is not limited to vegetables and fruits only but is also affecting the budget of Panchayats / बंदरों की शरारतें पंचायत बजट , मध्यप्रदेश में बंदरों की शरारतें और नुकसान सिर्फ फल, सब्जी या प्रसाद तक ही सीमित नहीं है बल्कि पंचायतों के बजट पर भी इसका असर पड़ रहा हैं।
बंदरों की शरारतें पंचायत बजट , राज्य के वन विभाग ने हाल ही में एक परिपत्र जारी कर स्पष्ट कर दिया है कि अब वह लालमुखी बंदरों (रिसस मकाक) को पकड़ने पर कोई खर्च नहीं करेगा।
विभाग ने तर्क दिया कि वर्ष 2022 में इस प्रजाति को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची से हटा दिया गया है, जिसके बाद विभाग के पास इन्हें पकड़ने का कानूनी अधिकार नहीं बचा।
मंदिरों से प्रसाद के अब चश्मा, पर्स चुराने से लेकर बच्चों को परेशान करने तक, बंदरों की बढ़ती समस्या की ढेरों शिकायतें लगातार मुख्यमंत्री हेल्पलाइन तक पहुँच रही हैं।
लेकिन अब ग्राम पंचायतों और नगरीय निकायों को ही अपने संसाधनों से बंदर की इस समस्या का समाधान करना होगा।
पंचायत के पदाधिकारी बताते हैं कि किस तरह मथुरा वृंदावन से पकड़ने वालों को बुलाकर प्रति बंदर की राशि रुपये दी गई थी जिस पर लाखों रुपये खर्च किए थे, लेकिन अब बन्दरों की आबादी फिर बढ़ गई।
महिलाएँ खेतों में काम करने या पानी लाने से डरती हैं। कई ग्रामीण बंदरों से बचते हुए चोटिल भी हो चुके हैं।
गाँव वालों का कहना है कि सरकार यदि वास्तव में पंचायतों को जिम्मेदारी दे रही है, तो अलग से बजट भी उपलब्ध कराना चाहिए, वरना यह समस्या ‘खाली हाथ बंदरों से लड़ने’ जैसी हो जाएगी।
खेत अब नील गाय, जंगली सुअर, और हाथी तक से महफ़ूज़ नहीं
वैसे समस्या केवल बंदर तक सीमित नहीं है किसानो के खेत अब नील गाय, जंगली सुअर, और हाथी तक से महफ़ूज़ नहीं है. इस समस्या ने खेती के उत्पादन के साथ फसल के चयन को भी प्रभावित किया है.