रायपुर / ETrendingIndia / मेड इन इंडिया गुणवत्ता प्रतीक , अमेरिकी टैरिफ के बीच नया सुझाव
SBI रिसर्च की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, भारत पर लगाया गया 25% टैरिफ एक खराब कारोबारी फैसला है। हालांकि, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की ताकतें इस प्रभाव को संतुलित कर लेंगी। इसके साथ ही रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि ‘मेड इन इंडिया’ को अटूट गुणवत्ता के प्रतीक के रूप में दोबारा स्थापित किया जाना चाहिए।
भारत पर असर सीमित, अमेरिका को अधिक जोखिम
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका की जीडीपी, महंगाई और मुद्रा भारत की तुलना में अधिक जोखिम में हैं। जबकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है (वित्त वर्ष 2025 में 20%), भारत ने अपने निर्यात को विविध देशों में फैलाया है। शीर्ष 10 देशों में केवल 53% निर्यात होता है।
फार्मा और टेक सेक्टर पर दबाव
भारत अमेरिका को जो शीर्ष 15 वस्तुएं निर्यात करता है, उनमें 63% हिस्सेदारी इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, रिएक्टर और जेम्स-जेवेलरी की है। अब इन सभी पर 25% टैरिफ लगेगा। इससे फार्मा कंपनियों की कमाई पर 2-8% तक असर पड़ सकता है, क्योंकि अमेरिका भारत के कुल फार्मा निर्यात का 40% हिस्सा रखता है।
दवा आपूर्ति पर पड़ेगा असर
रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि अगर अमेरिका API और दवा उत्पादन को दूसरे देशों में स्थानांतरित करता है, तो इसे पूरी तरह तैयार होने में 3-5 साल लग सकते हैं। इससे अमेरिका में दवाओं की कमी और कीमतों में वृद्धि हो सकती है। इसलिए भारत को अपने उत्पादों की ‘गुणवत्ता और विश्वसनीयता’ को वैश्विक पहचान बनानी चाहिए।
भारत भी टैरिफ में कर सकता है बदलाव
जब भारत द्वारा अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर लगाए गए MFN टैरिफ का विश्लेषण किया गया, तो औसत दर 20% पाई गई। कुछ क्षेत्रों जैसे ऑटोमोबाइल, FMCG, शराब, इलेक्ट्रिकल उपकरण, कपड़ा और उपभोक्ता सामानों पर 15% या उससे अधिक शुल्क है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि भारत इन क्षेत्रों में टैरिफ में कटौती पर विचार कर सकता है।