रायपुर 27 अक्तूबर 2025 / ETrendingIndia / Alarm bells ring in this country… 158,000 people lost in a year, the lowest birth rate in history, leaving the government sleepless / पोलैंड जनसंख्या संकट , यूरोपीय देश पोलैंड एक अभूतपूर्व जनसांख्यिकीय संकट से जूझ रहा है। देश की आबादी इतनी तेजी से घट रही है कि सरकार और विशेषज्ञ इसे चिंताजनक करार दे रहे हैं।
पोलैंड के सरकारी सांख्यिकी कार्यालय (त्रस्) द्वारा जारी ताजा, चौंकाने वाले आंकड़ों ने इस संकट को और गहरा दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले सिर्फ एक साल में पोलैंड की आबादी में 1,58,000 लोगों की भारी कमी आई है।
सितंबर 2025 के अंत तक, देश की कुल जनसंख्या घटकर लगभग 37.38 मिलियन (3.73 करोड़) रह गई है, जो 2024 के अंत की तुलना में भी 1,13,000 कम है।
जन्म दर ऐतिहासिक निचले स्तर पर
इस गिरावट का सबसे बड़ा कारण जन्म दर में ऐतिहासिक कमी है। त्रस् की रिपोर्ट बताती है कि जनवरी से सितंबर 2025 के बीच (पहली तीन तिमाहियों में) देश में केवल 1,81,000 बच्चों का जन्म हुआ। यह 2024 की इसी अवधि की तुलना में 11,000 कम है।
2025 की पहली तीन तिमाहियों में जनसंख्या में 0.30त्न की कमी आई, जिसका अर्थ है कि हर 10,000 निवासियों पर देश ने 30 लोगों को खो दिया, जो पिछले साल के 27 प्रति 10,000 के आंकड़े से भी बदतर है।
क्यों खाली हो रहा पोलैंड?
विशेषज्ञों का कहना है कि पोलैंड की आबादी घटने के पीछे कई कारण एक साथ काम कर रहे हैं। इसमें सबसे प्रमुख है देश की कुल प्रजनन दर (ञ्जस्नक्र) का 1.11 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर गिरना, जो न केवल यूरोपीय संघ में सबसे कम है, बल्कि जनसंख्या स्थिरता के लिए आवश्यक 2.1 के आंकड़े से भी बहुत कम है।
इस गिरावट को महंगाई, नौकरी की असुरक्षा और महामारी के बाद के प्रभावों जैसी बदलती सामाजिक प्राथमिकताओं ने और बढ़ाया है, जिसके चलते युवा शादी टाल रहे हैं और पहली बार मां बनने की औसत उम्र 1990 के 22.7 साल से बढ़कर 2024 में 29.1 साल हो गई है।
इसके साथ ही, बेहतर नौकरी और अच्छी जिंदगी की तलाश में युवाओं का बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है, जबकि इस पलायन की भरपाई के लिए देश में पर्याप्त नए लोग (अप्रवासन) भी नहीं आ रहे हैं।
1989 में पोलैंड की आबादी 4 करोड़ थी, लेकिन तब से यह लगातार कम हो रही है। त्रस् की रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो देश को गंभीर सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि घटती आबादी और बुजुर्ग होती जनसंख्या का सीधा असर श्रम बाजार (ङ्खशह्म्द्मद्घशह्म्ष्द्ग) पर पड़ेगा। काम करने वाले लोगों की कमी से देश का आर्थिक विकास प्रभावित होगा और पेंशन प्रणाली व स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव बेतहाशा बढ़ जाएगा।
