रायपुर / ETrendingIndia / उज्जैन वराहमिहिर तारामंडल , मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन जिले के डोंगला में अत्याधुनिक वराहमिहिर तारामंडल का लोकार्पण किया। इस डिजिटल तारामंडल में आगंतुकों को 4K फिल्म के माध्यम से खगोल विज्ञान के रहस्यों की जानकारी दी जाएगी।
मुख्यमंत्री ने बच्चों के साथ सूर्य विकिरण और उसकी तरंगों पर आधारित एक शैक्षणिक फिल्म भी देखी।
यह तारामंडल आचार्य वराहमिहिर न्यास द्वारा अवादा फाउंडेशन के आर्थिक सहयोग और डीप स्काई प्लेनेटेरियम,
कोलकाता के तकनीकी सहयोग से विकसित किया गया है।
यह वातानुकूलित गोलाकार संरचना एक साथ 55 दर्शकों को बैठाकर रोमांचक खगोलीय अनुभव प्रदान करेगी।
यह तारामंडल न सिर्फ वैज्ञानिक शिक्षा को बढ़ावा देगा, बल्कि विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि भी जागृत करेगा।
इसकी कुल लागत लगभग 1.6 करोड़ रुपये है।
उज्जैन सिर्फ एक धार्मिक नगरी नहीं, बल्कि प्राचीन भारत का वैज्ञानिक और खगोलीय केंद्र रहा है।
खगोल शास्त्र में उज्जैन का रहा है ऐतिहासिक महत्व
उज्जैन को “भारत की ज्योतिष राजधानी” भी कहा जाता है।
यहाँ महाकाल वेधशाला (जंतर मंतर) जैसे खगोलीय उपकरणों से युक्त वेधशाला मौजूद है, जिसे राजा जयसिंह ने बनवाया था।
इससे ग्रह-नक्षत्रों की सटीक गणना की जाती थी।
उज्जैन छठी शताब्दी के महान खगोलशास्त्री और ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर की कर्मभूमि थी।
उन्होंने “बृहत्संहिता” और “पंचसिद्धांतिक” जैसे ग्रंथों की रचना की, जो आज भी खगोल और ज्योतिष शास्त्र में मान्य हैं।
प्राचीन भारत में उज्जैन को समय और देशांतर रेखा (Meridian Line) का शून्य बिंदु माना जाता था।
यह खगोल गणनाओं के लिए आधार बिंदु था, ठीक वैसे ही जैसे आज Greenwich (लंदन) है।
ज्योतिषीय पंचांगों की गणना उज्जैन आधारित समयरेखा से होती थी।