रायपुर / ETrendingIndia / वेस्ट टू एनर्जी गाइडलाइंस , भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने वेस्ट टू एनर्जी (WtE) कार्यक्रम के लिए नई संशोधित गाइडलाइंस जारी की हैं। यह पहल राष्ट्रीय बायोएनेर्जी कार्यक्रम के तहत की गई है, जिसका उद्देश्य प्रदर्शन आधारित सहायता और सरलीकृत प्रक्रियाएं सुनिश्चित करना है।
पहले के मुकाबले अब प्रक्रियाएं काफी आसान कर दी गई हैं। कागजी कार्रवाई घटाई गई है और स्वीकृति की प्रक्रिया में सरलता लाई गई है। इससे बायोगैस, संपीड़ित बायोगैस (CBG) और बिजली उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद है। साथ ही, यह बदलाव पर्यावरणीय लक्ष्य—2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन को हासिल करने में सहायक होंगे।
गाइडलाइंस में सबसे अहम बदलाव सेंट्रल फाइनेंशियल असिस्टेंस (CFA) के वितरण को लेकर किया गया है। अब 50% CFA तब ही जारी किया जाएगा जब संयंत्र को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से “कंसेंट टू ऑपरेट” प्रमाण पत्र मिल जाएगा। शेष राशि संयंत्र के 80% क्षमता पर पहुँचने के बाद दी जाएगी।
अगर संयंत्र 80% क्षमता नहीं छू पाता, तो भी अब प्रॉ-राटा आधार पर फंडिंग संभव है—बशर्ते संयंत्र का प्लांट लोड फैक्टर 50% से अधिक हो। यह व्यवस्था व्यवसायिक स्थिरता को बेहतर बनाएगी और MSME सेक्टर को विशेष रूप से राहत देगी।
निरीक्षण प्रक्रिया में भी पारदर्शिता लाई गई है। अब यह कार्य राष्ट्रीय बायोएनेर्जी संस्थान (SSS-NIBE), राज्य नोडल एजेंसियों या MNRE-पंजीकृत संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा। यदि कोई डेवेलपर एडवांस CFA नहीं चाहता, तो केवल एक बार का परफॉर्मेंस निरीक्षण ही पर्याप्त होगा।
एक अन्य महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि डेवेलपर अब 18 महीनों के भीतर CFA क्लेम कर सकते हैं, चाहे वह संयंत्र चालू होने की तारीख हो या CFA की मंजूरी की तारीख—जो भी बाद में हो।
इन संशोधनों से भारत में सतत ऊर्जा विकास, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और स्वच्छ ऊर्जा नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही, यह निजी क्षेत्र और सरकारी एजेंसियों को भी Waste-to-Energy परियोजनाओं में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
कुल मिलाकर, ये बदलाव भारत को हरित ऊर्जा की दिशा में मजबूत करने की दिशा में एक निर्णायक कदम हैं।